ईश्वर की लीला | The Play of Gods

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जीवन, दृश्य और अदृश्य, सूक्ष्म और स्थूल के बीच एक जटिल परस्पर क्रिया है। प्रकृति के अपने नियम हैं तथा समय से पहले कुछ भी फलित नहीं होता।

जब हम नवरात्रि के दौरान देवी माँ का आह्वान करते हैं और उनकी उपस्थिति का उत्सव मनाते हैं, मुझे अयोध्या राम-मंदिर से संबंधित एक घटना याद आती है।

2001 में जब मैं वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में व्याख्यान देकर भारत लौटा, तो अटल बिहारी वाजपेयी जी ने मुझसे अयोध्या विवाद में अंतःक्षेप करने और सम्बंधित पक्षों के साथ बातचीत शुरू करने का अनुरोध किया। उनके कहने पर, मैं कई प्रमुख मुस्लिम नेताओं और समुदाय के अन्य प्रभावशाली सदस्यों से मिला, जिनमें सईद नकवी, AIMPLB सदस्य कमाल फारूकी, शबाना आजमी और जावेद अख्तर शामिल थे। अधिकांश नेता राजनीति के दायरे से बाहर, शांतिपूर्ण तरीके से समाधान के पक्ष में थे। यद्यपि हम ऐसी चर्चाएं कर रहे थे जो फलदाई प्रतीत होती थीं, मेरा मानना था कि इस विवाद के समाधान में अनुमान से अधिक समय लगेगा।

इस आधार पर मैंने विश्व हिंदू परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष अशोक सिंघल जी को सलाह दी कि वे धैर्य रखें और प्रार्थना करें। हमारी यह भेंट हुई थी जब वे हमारे आश्रम आए थे। नई दिल्ली में कांची शंकराचार्य और मुस्लिम नेताओं के बीच वार्ता विफल होने के तुरंत बाद वे मुझसे मिलने बैंगलोर आए थे। अशोक जी चाहते थे कि प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी निर्णायक रूप से राम मंदिर का रास्ता साफ करें। यही उनका एक सूत्रीय प्राथमिक लक्ष्य था।

हालाँकि, अशोक जी उस समय प्रधान मंत्री के साथ संवाद नहीं कर रहे थे और विशेष रूप से क्रोधित थे क्योंकि वाजपेयी जी ने उन्हें अयोध्या विषय पर अपने आमरण अन्न-त्याग को तोड़ने के लिए मजबूर किया था। इसलिए, वे मुझे मनाने बैंगलोर आए थे ताकि वाजपेयी जी को कानून लाने और राम जन्मभूमि संघर्ष को सदा के लिए समाप्त करने के लिए एकमत किया जाए। वे तब 76 वर्ष के थे और तीक्ष्ण बुद्धि के साथ उनकी आंखों में जोश और दृढ़ संकल्प की चिंगारी थी।

उनकी कुछ मांगें अव्यावहारिक लग रही थीं क्योंकि उस समय सरकार गठबंधन के समर्थन पर निर्भर थी और इस विषय पर सभी एकमत नहीं थे । उन्होंने कहा, “मुझे परवाह नहीं है भले ही यह सरकार के पतन की ओर ले जाए।” मैंने कहा, “इसके लिए प्रार्थना करो। आपकी प्रतिबद्धता से सब संभव है।” अशोक जी असहमत से होकर चले गए। उस समय, मुझे सहज रूप से लगा कि इसे बनाने में 14 वर्ष से अधिक का समय लगेगा लेकिन मैंने अपने विचार किसी के साथ साझा नहीं किए।

अगले दिन प्रातः ध्यान में हमें एक देवी मंदिर व उसके प्रांगण में एक कुण्ड दिखा जिसके जीर्णोद्धार की आवश्यकता थी। परन्तु हमने उस पर विशेष ध्यान नहीं दिया और अपनी दिनचर्या में लग गये। कुछ दिनों बाद चेन्नई के एक नाड़ी ज्योतिषी आश्रम में आए। यह बुजुर्ग सज्जन एक ऐसे परिवार से सम्बन्ध रखते थे, जिसने कई पीढ़ियों से प्राचीन शास्त्रों और ताड़ के पत्तों के संरक्षण का कार्य किया था, जिनमें प्राचीन काल के ऋषियों द्वारा मनुष्यों की भविष्यवाणी की गई थी।

नाड़ी ज्योतिषी ने कहा, “गुरूदेव राम जन्मभूमि विवाद को सदैव के लिए सुलझाने हेतु दोनों समुदायों को एक साथ लाने के कार्य में आपको महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी|” उन्होंने यह भी कहा, “अयोध्या में श्री राम की कुल देवी देव काली जी का मंदिर है, जो कि इस समय अत्यंत जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। जब तक इस मंदिर का पुनरूद्धार नहीं होगा, अयोध्या विवाद समाप्त नहीं होगा और तब तक हिंसा की स्थिति बनी रहेगी।”

उपस्थित लोगों में से कोई भी ऐसे देवकाली मंदिर के बारे में नहीं जानता था, इसलिए कुछ स्थानीय लोगों को यह पता लगाने के लिए कहा गया कि क्या ऐसा मंदिर अयोध्या में था भी या नहीं। शीघ्र ही यह ज्ञात हुआ कि वास्तव में इस क्षेत्र में दो काली मंदिर थे – एक शहर के बीचोबीच छोटी देवकाली मंदिर कहलाता है और दूसरा थोड़ा आगे देवकाली मंदिर कहलाता है। दूसरा वाला मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में था। इसमें एक कुण्ड था जो कचरा-घर बन गया था। हमने देवी मंदिर के जीर्णोद्धार और कुण्ड को पुनर्जीवित करने का फैसला किया।

उस समय, अयोध्या एक बुरी तरह से उपेक्षित शहर था जिसमें गंदी संकरी गलियां थीं। लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष को लेकर साधुओं और संतों की हत्याओं की कहानियों से इस स्थान पर भय का वातावरण व्याप्त था। किसी ने भी इन साधु-संतों के पक्ष में आवाज़ उठाने या आगे आने की हिम्मत नहीं की। ये ऐसे साधु-संत थे जिनका अपना न कोई परिवार था, न कोई आश्रम था और न ही कोई सामाजिक प्रतिष्ठा थी।

देवी मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य कुछ ही महीनों में पूरा हो गया और और हमारे साथ एक बड़ा समूह पुन: प्राण प्रतिष्ठा के लिए अयोध्या गया। बैंगलोर आश्रम से कई पंडितों ने मंदिर में देवी की पुन: प्राण प्रतिष्ठा पूजा का संचालन किया और 19 सितम्बर 2002 के दिन मंदिर में चंडी होम का आयोजन भी किया गया। बी. के. मोदी जी और अशोक जी ने भी इस कार्यक्रम में भाग लिया।

अनादिकाल से भारत के हर हिस्से में देवताओं की पूजा की जाती रही है क्योंकि उनका सूक्ष्म प्रभाव इस स्थूल जगत पर होता है।

उस शाम, एक विशाल संत समागम का आयोजन किया गया जिसमें श्री रामचंद्र दास परमहंस जी, दिगंबर अखाड़े के महंत और राम जन्मभूमि न्यास के प्रमुख शामिल थे। कुछ सूफी संतों को भी आमंत्रित किया गया था। मुस्लिम नेताओं ने मुझे रामचरितमानस की एक प्रति भेंट की और भगवान श्री राम के प्रति अपने गहरे आदर की बात रखी।

सदियों पुराने इस संघर्ष में काफी लोगों की जानें गईं और हमें एक ऐसे समाधान की आवश्यकता थी जो समय की कसौटी पर खरा उतरे। इसे ध्यान में रखते हुए मैंने कोर्ट से बाहर आम समझौते का प्रस्ताव रखा, जहां मुस्लिम समुदाय सद्भावना के रूप में हिंदुओं को राम जन्मभूमि उपहार में दें और बदले में हिंदू समुदाय एक मस्जिद के निर्माण के लिए 5 एकड़ जमीन उपहार में दें, और जिसके निर्माण में सहयोग भी करें। इससे दोनों समुदायों के बीच भाईचारे का स्पष्ट संदेश जाएगा।

अगले दिन अशोक जी ने मुझे इलाहाबाद के अपने पैतृक घर में आमंत्रित किया, जहां उनके भाई, उनके परिवार और उनके मित्र एकत्रित हुए थे। उनको सामूहिक ध्यान करवाने के बाद मैंने अशोक जी को बताया कि किसी भी कार्य के फलित होने में केवल मानवीय प्रयास ही नहीं, दैवीय इच्छा भी होती है। और इसके लिए व्यक्ति को धैर्य की आवश्यकता होती है। मैंने उन्हें संकेत किया कि उन्हें हड़बड़ी में कुछ नहीं करना चाहिए। शाम के अंत तक, अशोक जी पहले से कहीं अधिक निश्चिंत और आश्वस्त लग रहे थे, और वाजपेयी सरकार के विरुद्ध उनका दृष्टिकोण नरम हो गया था।

साल बीत गए। 2017 में, दोनों समुदायों के नेताओं के अनुरोध पर मैंने राम जन्मभूमि मामले में मध्यस्थता करने के अपने प्रयासों को पुनः आरम्भ किया। तब से, एक बिंदु से दुसरे बिंदु की ओर अग्रसर होते हुए आज अयोध्या अपने खोए हुए गौरव को पुनः प्राप्त करने के मार्ग पर है। हमारे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी और योगी आदित्यनाथ जी की सरकार के प्रयासों के लिए आभार कि एक समय मंदिरों के प्रति इस उदासीन शहर में अब प्रगति, समृद्धि और आध्यात्मिक उत्थान का एक जीवंत और प्रज्वलित रूपांतरण हो रहा है।

यह कहा जाता है “देवाधीनं जगत्सर्वं”, पूरी दुनिया देवताओं द्वारा परिचालित है। जीवन के सभी तत्व जिन्हें हम अपने नियंत्रण में समझते हैं, वास्तव में देवों द्वारा निर्देशित होते हैं। नवरात्री वह समय होता है जिसमें निर्विकार और करुणामय दैवी शक्ति का आह्वान किया जाए ।

टाइम्स ऑफ इंडिया पर सबसे पहले पोस्ट किया गया – https://timesofindia.indiatimes.com/india/the-play-of-gods/articleshow/90605205.cms

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