शिवरात्रि – शिव तत्व की जागृति | Shivaratri – Enlivening the Shiva Tattva

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शिवरात्रि की पवित्र रात्रि चेतना के सुंदरतम पक्ष शिव तत्व को जागृत करने का प्रतिनिधित्व करती है।

शिव कोई व्यक्ति या शरीर नहीं है। शिव वह शाश्वत तत्व (सिद्धान्त) है, जो सब तत्वों का सार है। यह वह मूल तत्व है, जिससे प्रत्येक की उत्पत्ति व पालन होता है और इसी में सब विलीन हो जाता है। इस अति सूक्ष्म व अप्रत्यक्ष तत्व को कोई कैसे समझ या समझा सकता है?

नटराज अथवा ब्रह्माण्ड के नर्तक के रूप में इस शिव तत्व की अति सुंदर और अपरिमेय अभिव्यक्ति अपनी संपूर्णता के साथ समाहित है। भौतिक और आध्यात्मिक सृष्टि के मध्य निरंतर नर्तन करने वाला अप्रतिम अद्भुत प्रतीक है – नटराज। नटराज की १०८ भंगिमाओं में से सबसे प्रिय और मोहक है, आनंद तांडव – आनंद का नृत्य। इसमें अभिव्यक्त शिव तांडव का सौंदर्य, लालित्य व गरिमा अद्वितीय है।

भौतिक जगत के प्रति वैराग्य तथा गहन साधना के द्वारा ही इस रहस्यमय जगत में प्रवेश पा कर आनंद तांडव के अनुभव योग्य हो सकते हैं। इस सृष्टि की अनगिनत परते है। जो अति सूक्ष्म जगत के भीतर प्रवेश पा जाता है, वह पाता है कि शिव का नर्तन निरंतर सातत्य रुप से चल रहा है। इस आनंदपूर्ण नृत्य का अनुभव वही कर सकता है जो कि शरीर, मन, बुद्धि और अहंकार की जटिलता से मुक्त हो गया है।

यद्यपि यह एक अवधारणा है कि शिव ने देहधारी रूप में इस ग्रह पर विचरण किया है ; शिव तो अनादि और अनंत हैं, अर्थात जन्म व मृत्यु से भी परे हैं। शिव को किसी आकार, समय और स्थान के साथ सीमित करने का अर्थ है कि सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञानी के इस अनंत सिद्धांत को सम्पूर्णतः नहीं समझ पाना।

नर्तक शिव के दाएं ऊपरी हाथ में डमरु विद्यमान है, जो अनंतता (∞) का प्रतीक है। यह ध्वनि और आकाश को  और निरंतर विस्तार व विलीन होने वाली ब्रह्माण्ड की अबाधित गति को दर्शाता है। यह परिमित नाद द्वारा ब्रह्म नाद का प्रतीक है।

नटराज के ऊपरी बाएँ हाथ में अग्नि, इस ब्रह्माण्ड की मौलिक ऊर्जा की प्रतीक है। आनंद इस ऊर्जा को ऊपर उठाता है, जब कि सांसारिक सुख इस ऊर्जा को नष्ट कर देते हैं। नीचे का दाँया हाथ, जो कि अभय मुद्रा में है वह सरंक्षण और सुशासन को सुनिश्चित करता है। दूसरा हाथ चरणों की ओर अनंत संभावनाओं का संकेत करता है।

पैरों के नीचे अप्समर है; यह राक्षस प्रतीक है उस अज्ञान का जिसमें मिर्गी रोग की तरह शरीर पर और ना ही जीवनी शक्ति पर कोई नियंत्रण रहता।

नटराज का आनंद तांडव सृष्टि के चक्र का प्रतीक है, जिसमें निरंतर उत्पत्ति और विनाश घटता रहता है। सारा जगत कुछ भी नहीं है केवल ऊर्जा की एक ताल है, जो की बार-बार लगातार विस्तृत और संकुचित होती रहती है।

ऐसा माना जाता है कि केवल देवता ही सूक्ष्म जगत या सूक्ष्म क्षेत्र का अनुभव कर सकते हैं। जो लोग गहन ध्यान की अवस्था में पहुंच जाते हैं वह इस का अनुभव कर सकते हैं। ऐसा कहा जाता है कि ‘देव: अप्राकृत: दिव्या मनुष्य रूप:’ अर्थात देवता अभौतिक शरीर प्रकाशमात्र रूप में व्याप्त होते हैं, मनुष्य अपनी सोच अनुसार उन्हें दैहिकरूप दे देता है। देवतायों के अलग-अलग रूप जो हम देखते हैं, ऋषियों के गहन ध्यान में हुए अनुभव का प्रकटीकरण हैं। ऋषि मुनियों को प्राप्त यही आंतरिक अनुभव, सुंदर कलाकृति का रूप लेकर मंदिरों में तथा कलात्मक रूप से भारतीय परिदृश्य में दिखाई देते हैं।

तमिलनाडु का चिदंबरम मंदिर नटराज के ब्रह्मांडीय स्वरूप की अप्रतिम अभिव्यक्ति करता है। ‘चित्त’ का अर्थ है चेतना और ‘अंबर’ का अर्थ है आकाश; चिदंबरम अर्थात जो अद्भुत चेतना से संबंधित है। शिव का सूक्ष्म आंतरिक नृत्य पृथ्वी पर संभव नहीं है। यह नृत्य नित्य रुप से चेतना के मंच पर होता रहता है। चिदंबरम मंदिर की मुख्य छत २१,६०० सोने की ईंटों से सजी हुई है, यह संख्या प्रतिदिन मनुष्य द्वारा ली गई साँसों जितनी है।

शास्त्रों में शिव तत्व को  सर्वव्यापी के रूप में दर्शाया गया है – ‘सर्वं शिवमयं जगत:’ – इस जगत में सबकुछ शिवमय या शिव का ही प्रकटीकरण है।

अपनी दिनचर्या के कार्यों से ऊपर उठकर सर्वोच्च महिमा व अनंत सत्ता के ध्यान में डूबने का, भोले और आनंदपूर्ण शिवतत्व में समाने का शिवरात्रि अद्वितीय समय है । यद्यपि शिवरात्रि की बाहरी पूजा बहुत बड़े अनुष्ठानों तथा अनेक प्रकार की वस्तुओं का प्रसाद व अनेक प्रकार के चढ़ावों से पूर्ण होती है; तथापि ऐसा कहा जाता है कि शिव के ऊपर चढ़ाए जाने वाले सर्वोत्तम पुष्प है ज्ञान, समभाव व शांति। स्वयं के साथ शिव तत्व का उत्सव मनाना ही वास्तविक शिवरात्रि है।

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