महात्मा गांधी का स्मरण करते हुए | Remembering Mahatma Gandhi

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महात्मा गांधी का हमारे परिवार पर और मेरे बचपन पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव था। मेरे दादा ने साबरमती आश्रम में बीस वर्ष रहकर महात्मा गांधी की सेवा की थी। मेरी दादी स्वेच्छा से अपना साढे दस किलो सोना उन्हें सौंप कर, “मैं बच्चों की देखभाल करुँगी, तुम जाओ और देश सेवा करते रहो ” यह कह कर वह  बच्चों को लेकर माता पिता के घर चली आयी।

मेरे शिक्षक पंडित सुधाकर चतुर्वेदी जी महात्मा गांधी के भी शिक्षक रहें है और वह उन्हें भगवद  गीता सिखाया करते थे। वह अभी भी जिंदा है और अब ११६ वर्ष  के हैं। बैंगलोर से होने के कारण गांधीजी उन्हें बैंगलोरी कहकर बुलाते थे। एक बार, उन्हें पुणे के यरवडा जेल में बंद किया गया था और कस्तूरबा उसी समय मृत्युशय्या पर थी। गांधीजी को जब यह  एहसास हुआ की कस्तुरबा जीवित रहना अभी संभव नहीं है, तब उन्होंने पंडित चतुर्वेदी से गीता के दूसरे अध्याय का पठन करने के लिए कहा। इसी अध्याय में एक श्लोक है जो स्तिथप्रज्ञ व्यक्ति का – जो ज्ञान में स्थापित और केंद्रित व्यक्ति के गुणों का वर्णन करता है। गांधीजी  ने कहा, “बैंगलोरी, आज तुम्हारे बापू की परीक्षा है। देखते हैं कि मैं मन का संतुलन बनाये रख पाता हूँ या नही। ५० वर्षों से अधिक मेरी पत्नी आज शरीर छोड़ रही है। मैंने इस औरत के साथ बहुत अन्याय किया है। मैंने हमेशा उसे अनचाहा काम करने के लिए मजबूर किया। मैंने उससे और उसके बच्चों के साथ क्रूरता का व्यवहार किया है। लेकिन फिरभी वह अपने आखिरी सांस तक मेरे साथ रही है। वही एक असली संत है, मैं नहीं।” कस्तुरबा के अंतिम क्षणों के दौरान जब वह उनकी बाहों प्राण त्याग रही थी, तब इसको उन्होंने स्वीकार किया।

गांधीजी अहिंसा और पशुओं के प्रति दया के एक बड़े समर्थक थे। एक बार उन्होंने एक गाय का दूध दुहते हुए देखा, दूध इतना जोर से निकाला जा रहा था की गाय के स्तनों से खून बहने लगा। यह देखकर उसी दिन से उन्होंने गाय का दूध पीना छोड़ दिया और केवल बकरी का दूध पीने लगे। उन्होंने कहा कि गाय के दूध के ऊपर पहला अधिकार बछड़े का होता है। वह गाय के प्रति इतना संवेदनशील थे और आज भारत गोमांस का अव्वल निर्यातक बन गया है। इस देश में लाखों गायों की पिछले कुछ वर्षों में हत्या कर दी गयी है। वह नशाबंदी के एक पक्के समर्थक थे, लेकिन कोई भी आज यह नहीं बताता है। वह धर्मांतरण के विरुद्ध   दृढ़ता से खड़े रहें लेकिन इस बारे में कोई भी बात नहीं करता। महात्मा गांधी जिन मूल्यों के साथ खड़े रहे, उन्हें पूरी तरह से उनके ही देश में ही ध्वस्त होते देख बहुत दुःख होता है।

हमारे देश के युवाओं को जागृत होकर अद्भुत शक्ति से भरे मूल्यों का पालन करना चाहिए। वह प्रतिदिन सत्संग भी किया करते थे। वास्तव में, यही कारण है कि  उनके आंदोलन जनमानस तक पहुँचे और सफल रहे। उनके सत्संग ने हजारों लोगों को इकट्ठा किया और वही लोग उनके लक्ष्य के साथ एकजुट हुए।

आज स्थिति गांधीजी के समय की तरह ही नाजुक है। हम फिर से परिवर्तन के दौर से गुजर रहे है और हमें अपने देश के लिए एक बेहतर भविष्य का बड़ा दृष्टिकोण रखकर एकजुट होने की आवश्यकता है। चलो एक बार फिर महात्मा गांधी की तरह बेहतर भारत के लिए जिम्मेदारी लेते है और आशा एवं उत्साह की लहर का सृजन करते है।

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