प्रधानमंत्री मोदी का शपथ ग्रहण समारोह : कुछ विचार | Reflections on Prime Minister Modi’s Swearing in Ceremony

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सार्वजनिक कार्यक्रमों में रस्में तथा शिष्टाचार विधियाँ आवश्यक रूप से सम्मिलित है। मनुष्य और समाज इनके बिना नहीं रह सकता। चाहे समारोह धार्मिक हो या धर्मनिरपेक्ष, शिष्टाचार विधियाँ मनुष्य समाज के लिए आवश्यक है। ऐसा कहा जाता है कि भारत में अभी भी औपनिवेशिक समय में चलाई गई शासकीय परंपराएं राजकीय कार्यक्रमों व समारोहों में अपनाई जाती है, निस्तेज हो चुकी इन शासकीय परम्पराओं को हटाने की आवश्यकता है। ऐसा ही एक कार्यक्रम था प्रधानमंत्री मोदी का शपथ ग्रहण समारोह।

यद्यपि यह एक ऐतिहासिक उत्सव था, सारे सहभागियों के बीच काफी उत्साह था (उनको छोड़ कर जो चुनाव हारे थे !) समारोह बहुत लंबा और उबाऊ था। मुझे उन विशेष अतिथियों के लिए खेद है, जो इतनी दूर सार्क देशों से आए थे और उनको इस गर्मी वाले मौसम में ३ घंटे के लिए बैठ कर वही शपथ ४८ बार सुननी पड़ी। मेहमानों को नीरस तथा उबाऊ परिस्थितियों में रखने के लिए निमंत्रण नहीं देना चाहिए था। सबके चेहरे पर बहुत अधिक उदासी थी। वहां न कोई संगीत था, न उत्सव का कोई अंश। राष्ट्रपति को बहुत सारी सीढ़ियां चढ़नी उतरनी पड़ी, जिसकी शायद उन्हें आदत नहीं थी।

इसके विपरीत पारम्परिक भारतीय शपथ ग्रहण समारोह बहुत अधिक रंगीन हो सकतें है, उसमें संगीत व नृत्य का समावेश हो सकता है। यह अधिक उचित हो, यदि प्रतीकात्मक रूप से प्रधानमंत्री तथा आधा दर्जन कैबिनेट मंत्री शपथ ग्रहण करें। समारोह में विशिष्ट अतिथियों द्वारा उनके देश की शुभकामनाओं के संदेश व सराहना के शब्द बोले जा सकते थे। फिर प्रधानमंत्री द्वारा उनके आने का स्वागत तथा देश के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का छोटा सन्देश भाषण देकर, समारोह में संगीत व पारंपरिक मंत्रोच्चारण को स्थान दिया जाना चाहिए था।

पारंपरिक रूप से भारत में जब राजा या प्रधानमंत्री शपथ ग्रहण करते थे, तब उनके ऊपर वहां की नदियों और सागरों का पवित्र जल छिड़का जाता था, जो उनको याद दिलाता था कि उनको इन सब की सुरक्षा का ध्यान रखना है। पंचतत्वों को साक्षी रख कर राजा के शपथ ग्रहण समारोह होते थे। महिलाएं राजा की आरती करती थी तथा गुरु राजा को तिलक लगाते थे। शहनाई, नादस्वर, शंख तथा मृदंग बजाए जाते थे, युवा उल्लास से नृत्य करते थे, संगीत व नृत्य से उत्सव का समापन होता था तथा बाद में विशाल भोज का प्रबंध होता था। कोई भी समारोह तभी उल्लासमय होता है जब उसमें हर क्षण कुछ मनोरंजक कार्यक्रम हो रहे हो व अतिथि उन सब का आनंद लेने में व्यस्त रहे।

राष्ट्रपति ओबामा का शपथ ग्रहण समारोह भारत के प्रधानमंत्री शपथ ग्रहण समारोह से अधिक मनोरम था। इस शपथ ग्रहण समारोह में तो कुछ लोग बेहोश हो गए थे। प्रधानमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह की अपेक्षा चंद्रबाबू नायडू का आंध्र प्रदेश में शपथ ग्रहण समारोह बेहतर था। इसमें ६ लाख लोगों की भीड़ को समारोह में व्यस्त रखने हेतु और शामिल करने हेतु, बहुत अधिक धूमधाम व तेज़ संगीत का आयोजन किया गया था।

समारोह चाहे राजनीतिक हो या धार्मिक, जब वह कम समय का तथा मनोरंजक हो तभी लोगों को बांधे रखता है। यदि यह लंबे समय का होगा तो नीरस तथा उबाऊ हो जाएगा। उत्सवों का उद्देश्य ही पवित्रता तथा प्रसन्नता का बोध करना है। यदि यह उबाऊ होंगे तो उत्सव का अर्थ समाप्त हो जाएगा।

क्या हम अपने समारोह अधिक उल्लासमय बना सकते हैं ?

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