पर्यावरण को प्लास्टिक मुक्त बनाएं, प्लास्टिक युक्त नहीं | Make the Environment Free of Plastics, Not Free For Plastics!

आध्यात्मिकता और मानवीय मूल्य | Updated: | 1 min read


पर्यावरण को प्लास्टिक मुक्त बनाएं, प्लास्टिक युक्त नहीं | Make the Environment Free of Plastics, Not Free For Plastics!  

आंकलन के अनुसार, हम प्रति वर्ष ५००,०००,०००,००० (५०,००० करोड़) प्लास्टिक के थैले उपयोग करते हैं, तथा प्रति मिनट १० लाख प्लास्टिक की बोतलें बिकती हैं। एक और आंकलन के अनुसार, मात्र पिछले वर्ष में, ५१ लाख करोड़ माइक्रो प्लास्टिक के कणों ने, हमारे महासागरों को प्रदूषित किया है। यह हमारे तारामंडल के तारों की संख्या से भी ५०० गुना अधिक है।

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आंकलन के अनुसार, हम प्रति वर्ष ५००,०००,०००,००० (५०,००० करोड़) प्लास्टिक के थैले उपयोग करते हैं, तथा प्रति मिनट १० लाख प्लास्टिक की बोतलें बिकती हैं। एक और आंकलन के अनुसार, मात्र पिछले वर्ष में, ५१ लाख करोड़ माइक्रो प्लास्टिक के कणों ने, हमारे महासागरों को प्रदूषित किया है। यह हमारे तारामंडल के तारों की संख्या से भी ५०० गुना अधिक है।

अगर मनुष्य की बनाई कोई वस्तु आज सर्वव्यापी है, तो वह है प्लास्टिक से फैला प्रदूषण। चाहे सागर हो या वायु, आकाश हो या पृथ्वी, इससे कहीं भी छुटकारा नहीं है। ६०-७० वर्ष के छोटे से कार्यकाल में प्लास्टिक ने आज हर चीज़ में प्रवेश कर लिया है, जैसे की कपड़े, वस्तुएं, खाद्य उद्योग, खुदरा उद्योग, इत्यादि।

प्लास्टिक की लंबी उम्र, जिसके कारण इसकी इतनी उपयोगिता है, आज धरती के लिये सबसे बड़ा खतरा बन चुकी है। इसका प्राकृतिक रूप से जैविक अनुक्रमण ना हो पाने के कारण, ऐसा माना जाता है कि, आज तक उत्पादित लगभग सभी प्लास्टिक, किसी न किसी रूप में आज भी उपस्थित है। भूमि और सागर में अत्याधिक मात्रा में उपस्थित प्लास्टिक का कचरा इस बात का प्रमाण है।

यह चिंता का विषय है, की अध्ययन से यह पता चला है, कि विश्व के सम्पूर्ण पीने के पानी में, प्लास्टिक के कण मौजूद हैं। आज विश्व एक विशाल आपदा के सामने खड़ा है। प्लास्टिक में फंसकर दम घुटने से, या उसे निगलने से, या फिर उससे निकलने वाले हानिकारक रसायनों से, पशुओं और चिड़ियों का नाश हो रहा है। यह मनुष्यों में विभिन्न स्वास्थ्य मापदंडों और हार्मोनल तंत्र को भी बाधित करता है।

आगे की राह | The Way Forward

सिर्फ प्लास्टिक के कचरे के ढेर को कम करना पर्याप्त नहीं है। हमें प्लास्टिक से फ़ैल रहे प्रदूषण को कई मोर्चों पर ख़त्म करना है। आर्ट ऑफ़ लिविंग ने इस मुद्दे पर विभिन्न परियोजनाएं प्रारम्भ की हैं।

Environment day 2018 - Tree plantation with Gurudev Sri Sri Ravi Shankar at Art of Living International Center in Bangalore.

विश्व स्तर के स्वयंसेवी तंत्र के माध्यम से, हमने अब तक भारत, और पूरे विश्व में ७.१ करोड़ पेड़ लगाये हैं। हरित क्षेत्रों को बढ़ाना, प्लास्टिक जलाने से उत्पन्न होने वाले हानिकारक डाइऑक्सिन से मुकाबला करने के सबसे उपयोगी तरीकों में से है। इसी प्रकार, हमने देखा है कि खेती के प्राकृतिक तरीकों को उपयोग में लाने से, ना सिर्फ खेती धारणीय होती है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में प्लास्टिक की पलवार के ज़रिये फ़ैल रहे प्रदूषण से भी इससे निज़ात पायी जा सकती है। जल श्रोतों के संरक्षण और जीर्णोद्धार के लिए चल रही हमारी परियोजनाओं के माध्यम से, प्लास्टिक के कचरे की गंभीर समस्या को भी संबोधित किया जा रहा है।

अल्प-मार्गों (शॉर्टकट) से बचें और फुटप्रिंट घटाएं | Avoid Short-cuts & Reduce the Footprint

प्लास्टिक प्रदूषण से लड़ने के लिए हमें प्लास्टिक एवं अपने जीवन जीने के रवैये के प्रति एक मौलिक परिवर्तन लाने की आवश्यकता है। अपने दैनिक जीवन में हम ९० प्रतिशत प्लास्टिक, जैसे की सब्जी के थैले, पैकिंग की पन्नियां, डिस्पोज़ेबल थालियां, चम्मच, स्ट्रॉ, कप के ढक्कन, इत्यादि का, सिर्फ एक बार उपयोग करके फेंक देते हैं। लोगों को इस बात पर शिक्षित करना चाहिए कि कैसे हमने अपनी ज़रा सी सहूलियत के लिए ऐसी आदतें डाल ली हैं, जिनसे पृथ्वी को अपरिवर्तनीय नुकसान पहुँच सकता है। सिर्फ एक बार उपयोग में आने वाली सभी प्लास्टिक का प्रयोग बंद करना सही दिशा में पहला कदम होगा। अगर आपको प्लास्टिक की कोई वस्तु मिलती भी है, तो उसे जितना हो सके पुनः प्रयोग करें, और फिर उसे पुनर्चक्रित करें।

विकल्प खोजें | Hunt For Alternatives

हमें प्लास्टिक के विकल्प खोजने के कार्य को और भी शीघ्रता से करना चाहिए, जिससे हमें ऐसे विकल्प मिलें जो पर्यावरण के अनुकूल हों, धारणीय हों, लागत प्रभावी हों, तथा सुविधाजनक भी हों। इस समस्या के समाधान के लिए सरकार और देश के नागरिक, दोनों को साथ मिलकर काम करना पड़ेगा।

बड़ा सोचें और आवाज़ उठाएं | Think Big and Speak Out Loud

सबसे ज़रूरी कदम है लोगों को शिक्षित करना है, जिससे कि वह जीवन को एक विशाल दृष्टिकोण से देखें, और प्रकृति के प्रति उनमें आदर और सम्मान हो। भारत में, पारंपरिक रूप से ही, प्रकृति को इष्ट माना गया है, तथा पर्वतों, नदियों, पेड़ों, सूर्य, चन्द्रमा एवं पंच तत्त्व, सभी को दैवीय गुण प्रदान किये गए हैं। वास्तव में, पूरे विश्व की प्राचीन सभ्यताओं ने, प्रकृति के प्रति गहरा सम्मान दिखाया है। आज ये अत्यावश्यक हो गया है, कि हम अपने मन को तनाव और लोभ से मुक्त करें, और प्रकृति का पोषण करें। यह कदम उठाने का समय है।

ऐसा करने की शपथ लें | And Pledge To Do It

भारत २०१८ के विश्व पर्यावरण दिवस का वैश्विक आतिथेय है। और इस वर्ष का विषय है “प्लास्टिक प्रदूषण को पराजित करना।” इस विश्व पर्यावरण दिवस पर हम शपथ लें, कि प्लास्टिक के उपयोग को आधे से भी कम करने के लिए, हमारी क्षमता में जो भी हो सकता है, वो हम करेंगे। इसकी शुरुआत हम ऐसे कर सकते हैं, कि जब भी, जहाँ भी संभव हो, हम डिस्पोज़ेबल प्लास्टिक की जगह पुनर्चक्रण योग्य प्लास्टिक चुनें, अपने पुनर्चक्रण योग्य थैले एवं पानी की बोतल लेकर चलें, और सिर्फ एक बार उपयोग करके फेंकने वाली प्लास्टिक की वस्तुओं के प्रयोग से बचें।

प्रकृति को आपके सहारे की आवश्यकता है। आज ही शपथ लें।

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